SC-ST एक्ट में हाईकोर्ट का बड़ा फैसला: अपराध की जानकारी होना ज़रूरी, उम्रकैद घटाकर 14 साल की सजा सुनाई
हाईकोर्ट अपडेट! छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट ने एक अहम फैसले में कहा है कि SC-ST (अत्याचार निवारण) अधिनियम के तहत अपराध तभी साबित माना जाएगा जब यह स्पष्ट हो कि आरोपी को पीड़िता की जाति की जानकारी थी। कोर्ट ने इसी आधार पर एक आरोपी की उम्रकैद की सजा को संशोधित कर 14 साल के कठोर कारावास में बदल दिया।
क्या है मामला?
गौरेला-पेंड्रा-मरवाही जिले में 7 फरवरी 2018 को एक छह वर्षीय आदिवासी बच्ची के साथ दुष्कर्म की वारदात हुई थी। आरोपी प्रमोद उर्फ नान्हू तिवारी ने बच्ची को बिस्किट का लालच देकर अगवा किया और जंगल की ओर ले गया। गनीमत रही कि बच्ची के पिता समय पर पहुंच गए और आरोपी को रंगे हाथ पकड़कर बच्ची को बचा लिया।
निचली अदालत ने दी थी उम्रकैद
विशेष न्यायालय ने आरोपी को भारतीय दंड संहिता, पॉक्सो एक्ट और SC-ST एक्ट के तहत दोषी मानते हुए उम्रकैद की सजा सुनाई थी। साथ ही अपहरण के आरोप में 10 साल की सजा भी दी गई थी
हाईकोर्ट में मिली राहत, लेकिन सजा बरकरार
आरोपी ने इस फैसले को हाईकोर्ट में चुनौती दी। चीफ जस्टिस रमेश सिन्हा और जस्टिस रविंद्र कुमार अग्रवाल की डिवीजन बेंच ने पाया कि अपराध 2019 के कानून संशोधन से पहले हुआ था, जब न्यूनतम सजा 20 साल नहीं थी। इसी आधार पर उम्रकैद को घटाकर 14 साल की कठोर कैद कर दी गई।
साथ ही कोर्ट ने यह भी कहा कि अभियोजन यह साबित नहीं कर सका कि आरोपी को पीड़िता की जाति के बारे में जानकारी थी। इस कारण SC-ST एक्ट के तहत दोषसिद्धि टिक नहीं सकी।
कानूनी दृष्टिकोण से अहम निर्णय
यह फैसला आने वाले समय में कई मामलों के लिए नज़ीर बन सकता है, जिसमें SC-ST एक्ट के तहत आरोपी की मंशा और जाति की जानकारी को लेकर सवाल उठते हैं।